ईश्वर दुबे
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Bhilai
राहुल गाँधी नें एक पात्र जारी कर, अपने इस्तीफे के फैसले को सार्वजनिक कर दिया है. इसके साथ ही सोशल मीडिया साइट्स में भी उन्होनें अपने इस्तीफे की बात सार्वजनिक की, जिससे सोशल मीडिया में काफी प्रतिक्रिया मिल रही है. कांग्रेस के सभी बड़े नेता बा भी राहुल को मनाने में लगे हुए हैं. राहुल गाँधी नें जो पत्र जरी किया है, उसमें उन्होनें कहा कि-
It is an honour for me to serve the Congress Party, whose values and ideals have served as the lifeblood of our beautiful nation.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 3, 2019
I owe the country and my organisation a debt of tremendous gratitude and love.
Jai Hind ?? pic.twitter.com/WWGYt5YG4V
“मैं अब कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हूँ” : राहुल गाँधी
“एक महीने पहले ही हो जाना था चुनाव” : राहुल गाँधी
“CWC जल्द से जल्द बैठक बुलाकर फैसला ले” : राहुल गाँधी
“हफ्ते भर में चुन लिया जाएगा पार्टी अध्यक्ष” : सूत्र
राहुल नें ट्वीटर पर भी ट्वीट किया : “कांग्रेस की सेवा करना मेरे लिए सम्मान की बात रही, जिसके मूल्य और आदर्श हमारे खुबसूरत राष्ट्र के जीवन दाई रक्त का काम करते रहें है. मेरे ऊपर अपने देश और संगठन के बेहद आभार और और प्यार का क़र्ज़ है. जय हिन्द.”
अब जब की साफ़ हो गया है कि राहुल गाँधी को तमाम कांग्रेसी नेताओं से मनावाने के बाद भी राहुल अपने इस्तीफे पर कायम है, तो आपको बताते चले की कांग्रेस का जो नियमावली कहती है, कि अब कांग्रेस के जो सबसे वरिष्ट नेता या जनरल सेक्रेटरी (महासचिव) होंगे, वो कांग्रेस के कार्यकारिणी अध्यक्ष होंगे. यानि मोतीलाल वोरा इस वक़्त सबसे वरिष्ट हैं, और वे ही अगली कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाएँगे, जिसमें नए अध्यक्ष के बारे में जो भी दिशा निर्देश है, दिए जाएँगे.
अन्य कांग्रेसी नेताओं नें राहुल गाँधी के इस्तीफे के विषय में क्या कहा-
"कार्यकारी समिति की बैठक में सब नें अनुरोध किया कि राहुल गाँधी का इस्तीफा नामंजूर कर लिया जाए, लेकिन वे नहीं माने. अभी कांग्रेस को राहुल गाँधी के नेत्रित्व की बहुत ज़रुरत है, राहुल गाँधी जी 2017 से कांग्रेस अध्यक्ष बनें और उन्होनें कांग्रेस को लगातार सभी प्रदेशों में मजबूती देने का कार्य किया" मोतीलाल वोरा
"राहुल गाँधी जी से देश के कार्यकर्ताओं नें आग्रह किया है, कि अपना इस्तीफा वापिस ले-ले, और अध्यक्ष के रूप में दुबारा कांग्रेस पार्टी का नेत्रित्व करें. क्योकि जो संघर्ष उन्होनें किया है, वो सभी लोग जानते हैं, आगे आने वाले चुनावों में राहुल गाँधी जी की नेत्रित्व की बहुत ज़रूरत है" सचिन पायलट (डिप्टी सी. एम्. राजस्थान)
वहीँ भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी से जब पत्रकारों नें पुछा की राहुल गाँधी नें अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है, आपकी क्या प्रतिक्रिया है, तो स्मृति ईरानी जी ने बस मुस्कुराते हुए जय श्री राम कहा.
इन सब बातों के क्या मतलब हो सकते हैं, ये तो समय ही बताएगा. लेकिन अभी राहुल के इस्तीफे ने कांग्रेस को हिला कर रख दिया है.
जयप्रकाश नारायण की जनसभा के चंद घंटों बाद ही भारतीय आजादी के बाद का सबसे मनहूस क्षण आया जब गैरकानूनी तरीके से अपनी सत्ता को बचाने के लिए संवैधानिक मान-मर्यादाओं को कुचलते हुए देश पर आपातकाल थोप दिया गया।
देहात में एक कहावत है 'जात भी गवाई और भात भी ना मिला'। कहने का मतलब यह है कि सब कुछ गवाने के बाद भी कुछ हासिल ना होना और शायद इसी बात की अनुभूति उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कर रहे होंगे। 23 मई 2019 से पहले तरह-तरह के दांवे करने वाले अखिलेश अपनी चुनावी हार पर चुप्पी साधे हुए हैं और उनकी सहयोगी रहीं बसपा प्रमुख मायावती उन पर हमलावर हैं। उत्तर प्रदेश में जब बुआ-बबुआ की जो़ड़ी बनी थी तब राजनीतिक पंडित यह दावा करने लगे थे कि यह जो़ड़ी कम से कम 50 सीट जीतने में कामयाब होगी। पर ऐसा हुआ नहीं। सपा-बसपा महज 15 सीट जीतने में ही कामयाब रहीं। हालांकि यह किसी ने नहीं सोचा था कि गठबंधन परिणाम आने के कुछ दिन बात ही खत्म हो जाएगा। इसकी शुरूआत मायावती ने ही कर दी। सबसे पहले तो उन्होंने उपचुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया और उसके बाद धीरे-धीरे अखिलेश और उनकी पार्टी पर हमले करने लगीं।
गृहमंत्रालय में इन दिनों राज्यपाल, मुख्यमंत्रियो और मंत्रियों का आना जाना लगा हुआ है। अब तक केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण कामकाज की दिशा में प्रधानमंत्री कार्यालय के बाद वित्त मंत्रालय ही आता था लेकिन शाह की एनर्जी और लगातार चल रही बैठकों पर ध्यान दें तो अरुण जेटली के सरकार में न होने के बाद से गृह मंत्रालय ने सुर्खियां बटोरी हुई है। हालांकि पार्टी प्रमुख होने के नाते अमित शाह का मंत्रियों और नेताओं से मिलना तो स्वभाविक था। पिछली मोदी सरकार में गृहमंत्रालय के काम कर चुके एक ब्यूरोक्रेट बताते हैं कि यह पहली बार है गृह मंत्रालय के तहत अंतर-मंत्रालयी बैठक हो रही है। जबकि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में यह बमुश्किल आयोजित होती थीं। गौरतलब है कि सालों पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल को देश के सबसे निर्णायक गृह मंत्रियों के रूप में देखा जाता था और ऐसा ही उदाहरण लालकृष्ण आडवाणी ने भी पेश करने का प्रयास किया था लेकिन अब अमित शाह यह जिम्मा निभा रहे हैं।
इससे पहले कभी नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव या अतिरिक्त प्रधान सचिव को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया हो। खास बात यह है कि इन दोनों अधिकारियों का कार्यकाल प्रधानमंत्री के कार्यकाल के साथ पूरा होगा।
दरअसल कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर प्रधानमंत्री ने दर्शाया है कि वह अपने इन दोनों अधिकारियों की ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा से कितने प्रसन्न हैं। यही नहीं प्रधानमंत्री ने हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद पर अजित डोभाल को दोबारा नियुक्त करते हुए उन्हें भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रदान किया था। इसके अलावा पिछली सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री रहे डॉ. जितेन्द्र सिंह को दोबारा यह पद सौंपा गया है। नरेंद्र मोदी को 2019 के लोकसभा चुनावों में जो बड़ा जनादेश मिला है उसकी सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों, कर्मचारियों को भी जाता है जिन्होंने दिन-रात मेहनत करके सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर नजर रखी, पारदर्शिता बरतने के लिए हर संभव प्रयास किये और प्रधानमंत्री की स्वप्निल योजनाओं को मूर्त रूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नरेंद्र मोदी ने अपने अधिकारियों पर जो भरोसा जताया है वह दर्शाता है कि वह अपने पुर्न निर्वाचन में प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों द्वारा किये गये कार्य का भी योगदान मानते हैं और अपने विश्वस्त अधिकारियों के सहयोग से अपनी दूसरी पारी में कुछ बड़ा करना चाहते हैं।
वायनाड से चुनाव जीतने के बाद राहुल शुक्रवार को तीन दिन के दौरे पर केरल पहुंचे
राहुल गांधी ने शनिवार को वायनाड में रोड शो किया, 15 स्थानों पर स्वागत समारोह
राहुल ने कहा- वायनाड के सभी धर्म और जाति के नागरिकों के लिए मेरे दरवाजे खुले
तिरुवनंतपुरम. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने केरल दौरे के दूसरे दिन शनिवार को अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड में रोड शो किया। वे मतदाताओं का आभार जताने के लिए तीन दिवसीय दौरे पर केरल गए हैं। रोड शो के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। राहुल ने कहा कि मोदी जहर का इस्तेमाल करते हैं और हम राष्ट्रीय स्तर पर इसके खिलाफ लड़ रहे हैं। वे नफरत, गुस्से और लोगों को बांटने की राजनीति करते हैं। चुनाव जीतने के लिए झूठ बोलते हैं।
राहुल ने कहा, ''मैं कांग्रेस से हूं और जाति-धर्म और विचारधारा से इतर वायनाड के हर व्यक्ति के लिए मेरे दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आप किस पार्टी से हैं। आपने मुझे समर्थन दिया, यह अद्वितीय है। मौजूदा केंद्र सरकार और मोदी देश में नफरत फैला रहे हैं। कांग्रेस जानती है कि इससे निपटने का एकमात्र रास्ता प्यार है। हम देश में कमजोरों को मोदी की नीतियों से बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मैं आपका प्रतिनिधित्व करने और बेहतर वायनाड बनाने के लिए तैयार हूं।''
'वायनाड की आवाज बुलंद करना मेरा कर्तव्य'
कांग्रेस अध्यक्ष ने शुक्रवार को मल्लापुरम में रोड शो के बाद जनसभा को संबोधित किया था। उन्होंने कहा कि मैं केरल का सांसद हूं। यह मेरी जिम्मेदारी है कि न सिर्फ वायनाड बल्कि पूरे केरल के नागरिकों से जुड़े मुद्दों को आवाज दूं। वायनाड के लोगों की आवाज सुनना और उनकी आवाज बनना मेरा कर्तव्य है। आप सभी के प्रेम और स्नेह का धन्यवाद, जो आपने मेरे लिए दिखाया।
राहुल ने केरल और उप्र से लड़ा था चुनाव
राहुल ने केरल और उत्तरप्रदेश की दो सीटों पर चुनाव लड़ा था। अमेठी में उन्हें स्मृति ईरानी से हार मिली, जबकि वायनाड में राहुल 4 लाख 31 हजार से ज्यादा वोट से जीते थे। वायनाड से जीतने के बाद राहुल का केरल का यह पहला दौरा है। वे रविवार तक केरल में अलग-अलग कार्यक्रमों में शामिल होंगे।
किसानों की खुदकुशी पर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था
जीत के बाद राहुल ने 24 मई को वायनाड की जनता का आभार जताया था। इसके बाद 31 मई को उन्होंने मुख्यमंत्री पिनरई विजयन को पत्र लिखकर वायनाड में कर्ज की वजह से खुदकुशी करने वाले किसानों की जानकारी मांगी थी। उन्होंने सरकार से आग्रह किया था किसानों के परिवार की आर्थिक मदद का दायरा बढ़ाया जाए।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि उनकी पार्टी के 52 सांसद इंच इंच की लड़ाई लड़ेंगे लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता पार्टी की चुनावी संभावनाओं को फीट-फीट गड्ढा खोद कर दफन करने में लगे हुए हैं।
लोकसभा चुनावों के परिणाम आये हुए लगभग दो सप्ताह हो चले हैं लेकिन विपक्ष में मची आपसी खींचतान कम होने का नाम नहीं ले रही है। 2019 के जनादेश ने पहले कांग्रेस के अरमानों पर बुरी तरह पानी फेर दिया तो अब कांग्रेस के अपने लोग पार्टी को खत्म करने में लगे हुए हैं। विभिन्न राज्यों से जिस तरह पार्टी में उठापटक की खबरें आ रही हैं वह निश्चित रूप से कांग्रेस आलाकमान के लिए बेचैन कर देने वाली हैं। मुश्किल समय में पार्टी को जिस तरह अपने ही लोग झटका दे रहे हैं उसने देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का भविष्य खतरे में डाल दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि उनकी पार्टी के 52 सांसद इंच इंच की लड़ाई लड़ेंगे लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता पार्टी की चुनावी संभावनाओं को फीट-फीट गड्ढा खोद कर दफन करने में लगे हुए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कैबिनेट मामलों की 8 समितियों के गठन की घोषणा की थी। इन आठों समितियों में गृह मंत्री अमित शाह को शामिल किया गया था लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को केवल दो समिति में ही शामिल किया गया था।
मौजूदा अध्यक्ष अमित शाह लोकसभा चुनाव जीतकर मोदी सरकार में केन्द्रीय गृह मंत्री बनाए गए हैं और उनकी जगह अब नये अध्यक्ष की तलाश की जा रही है। अध्यक्ष की दौड़ में कैलाश विजयवर्गीय के अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं संसदीय बोर्ड के सचिव जेपी नड्डा और पार्टी महासचिव भूपेन्द्र यादव भी शामिल हैं। वहीं जिस तरह से कैलाश विजयवर्गीय ने लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के किले को ध्वस्त किया है उससे उनका कद अवश्य ही बीजेपी में बढ़ा है। जिसके चलते उन्हें व उनके खास सिपहसालारों को भी उम्मीद बंधी हुई है कि कैलाश को अध्यक्ष पद से नवाज कर पश्चिम बंगाल में मिली सफलता का तोहफा दिया जायेगा।
-दिनेश शुक्ल
कांग्रेस की दुर्दशा का कारण उसका लचर नेतृत्व है। इंदिरा गांधी के समय से ही पार्टी को इस परिवार ने बंधक बना रखा है। इससे हटकर जो कांग्रेस में आगे बढ़े, उनका अपमान हुआ। सीताराम केसरी को धक्के देकर कुर्सी से हटाया गया था।
2019 के लोकसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए बहुत बुरी खबर लेकर आए। और जैसा कि अपेक्षित था, देश की सबसे पुरानी पार्टी में भूचाल आ गया। एक बार फिर हार की समीक्षा के लिए कमेटी का गठन हो चुका है। पार्टी में इस्तीफों की बाढ़ आ गई है। खबर है कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस्तीफा देने पर अड़े हैं। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता से लेकर आम कार्यकर्ता तक राहुल गांधी और उनके नेतृत्व में अपना विश्वास जता रहे हैं। यह अच्छी बात है कि ऐसे कठिन दौर में भी किसी संगठन का अपने नेतृत्व पर भरोसा कायम रहे। लेकिन ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि लगातार मिलने वाली असफलताओं के बावजूद उस संगठन के बड़े नेता से लेकर आम कार्यकर्ता तक अपने नेता के साथ मजबूती से खड़े हों। सभी लोग राहुल को यह समझाने में लगे हैं कि उन्होंने चुनावों में बहुत मेहनत की और चुनावों में पार्टी की हार क्यों हुई उसकी समीक्षा की जाएगी वे मन छोटा ना करें पार्टी हर हाल में उनके साथ है।